ज़फ़र का शहर - दिल्ली
उलझे सवालों की तस्वीरें बंकर, आँखों को चुभती तेरी हेर नज़र.
ज़मनों से गुज़रते हुए, जाने किस मुकाम पे है येह सातवान शहर.
ज़ुबानों की तेज़ तकरार, सड़क पर रोज़ जीत हार
पहियों पर भगाते किस्मतों का भारया नुक्कड चौराहों पर गुमनान - 16 लख बे-घरबार
दिल्ली तेरे दरबार में ...
उजाले से भीक मांगते और अन्ध्रों को रिश्वत देते हैं,
फिर फरेब की चादर से सब कुछ धक देते हैं.
असर किसी लहर हा नहीं
नही छुता कोई नया खायल
बदलता है तू हर शाम -
थोडा और सेहमा, थोडा और अंजान
फिर सुबह से दौड में जीटने की होड
शयद ज़फ़र की है लगी है या ...
गुज़रते हवाओं की नज़र.
तुझे आज देख कर लगता नहीं
ज़िंदा है येह शहर.
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